نگاہیں وضو پھر بنانے لگیں گی
کہ منظر زرا جھلملانے لگے گا
مدینے پہ پہلی نظر جب پڑیگی
مقدر مرا جگمگانے لگے گا
ہر اک سو نظارے نظر میں بسا کے
پھر اس میں محبت کا واجب ملا کے
ہر اک نکتا دل میں سجا کے بسا کے
وہ جنت کا نقشا بنانے لگے گا
بذاہر لبوں کو بھی خاموش رکھ کر
مگر ان نگاہوں میں اک آس رکھ کر
دعاؤں میں حصرت کو عرضداشت رکھ کر
مرا دل سدائں لگانے لگے گا
ذہن میں حیرت کے قصے چلیں گے
عقابی میں انکے ہی سکے چلیں گے
خیالوں خیالوں میں دھن لگ پڑیگی
وہ نعت نبی گن گنا نے لگے گا
تبسم کے منظر عنایت کے منظر
افف وہ نبی کے شفاعت کے منظر
یا حسنین کاندھے پہ طرف پیمبر
جو دل سونچ لے مسکرانے لگے گا
جو نفرت تھے کرتے انہیں کے ہوے ہیں
بہت سے مدداح تو سن کے ہو ۓ ہیں
گدا ہو یا اے شاہ ان سے نبھا لے
تو نارے رسالت لگانے لگے گا
निगाहें वु़जु़ फिर बनाने लगेंगी
के मन्ज़र ज़रा झिलमिलाने लगेगा
मदीने पे पहली नज़र जब पड़ेगी
मुकद्दर मेरा जगमगाने लगेगा
हर एक सू नज़ारे नज़र में बसा के
फिर उसमें मोहब्बत का वाजिब मिला के
हर इक नुक्ता दिल में सजा के बसा के
वो जन्नत का नक्शा बनाने लगेगा
बजा़हिर लबों को भी खा़मोश रखकर
मगर इन निगाहों में एक आस रखकर
दुआओं में हसरत को अर्ज़दाश्त रखकर
मेरा दिल सदाएं लगाने लगेगा
जेहन में हैरत के किस्से चलेंगे
उक़्बा में उनके ही सिक्के चलेंगे
ख्यालों ख़्यालों में धुन लग पड़ेगी
वो न आते नहीं गुनगुनाने लगेगा
तबस्सुम के मन्ज़र इनायत के मन्ज़र
उफ्फ़ वो नबी के शफा़अत के मन्ज़र
या हस्नैन कांधे पे तर्फे पयम्बर
जो दिल सोनी ले मुस्कुराने लगेगा
जो नफ़रत थे करते उन्हीं के हुए हैं
बहुत से मद्दाह तो सुन के हुए हैं
गदा हो या ए शाह उन से निभा ले
तो नारे रिसालत लगाने लगेगा
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी