अपनी हार से तिलमिलाई मोदी सरकार ने बजट में किसान से बदला लिया

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योगेंद्र यादव
इस साल के बजट का किसान को विशेष रूप से इंतजार था। लेकिन 90 मिनट के अपने भाषण में बमुश्किल ढाई तीन मिनट में कुछ इधर उधर की बातें कर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खेती किसानी का मामला निपटा दिया। बजट का राजनीतिक संदेश साफ था। तीन किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने को यह सरकार किसानों के से मिली सीख की तरह नहीं बल्कि एक अपमानजनक हार के रूप में देखती है और इस ऐतिहासिक आंदोलन से मिली हार का बदला किसान से लेने पर आमादा है।

यह बजट तीन कारणों से विशेष था। एक:किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन के बाद यह पहला बजट था इसलिए उम्मीद थी कि किसानों को इंसाफ मिलेगा, देश की अर्थव्यवस्था में अपना वाजिब हक मिलेगा। दो: कोविड महामारी में मंदी और लॉकडाउन के बावजूद अर्थव्यवस्था को कृषि क्षेत्र में बचाए रखा था इसलिए उम्मीद थी की किसान को इसका इनाम मिलेगा। तीन: किसानों की आय दोगुनी करने की छह वर्षीय योजना इस साल पूरी हो रही थी इसलिए उम्मीद थी कि कम से कम ईमानदारी से किसान की आय का हिसाब मिलेगा।

लेकिन इस बजट में ना तो इंसाफ था ना कोई इनाम और ना ही लेश मात्र का भी ईमान। 28 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बरेली में घोषणा की थी कि अगले 6 साल में किसानों की आय दोगुना हो जाएगी पिछले 6 साल से प्रधानमंत्री कृषि मंत्री और भाजपा का हर नेता और कार्यकर्ता दुगनी आए का राग अलाप रहे थे लेकिन जब जवाब देने का दिन आया तो वित्त मंत्री एकदम चुप्पी साध गए बजट भाषण में एक शब्द भी इसके बारे में नहीं बोला।

सरकार की अपनी कमेटी के हिसाब से वर्ष 2016 में देश के किसान परिवार की औसत मासिक आय ₹8059 थी। सरकारी कमेटी ने मंहगाई का अनुमान लगाते हुए हिसाब किया की वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के लिए किसान परिवार की आय 21,146 रुपया प्रति माह हो जानी चाहिए। लेकिन वर्ष 2019 तक किसान की आय बढ़कर मात्र ₹10,218 हुई थी उसके बाद का 3 साल से सरकार ने आंकड़े देने बंद कर दिए किसी भी अनुमान से यह ₹12000 तक नहीं पहुंची है। इस कड़वी सच्चाई को देश के सामने रखने की बजाय वित्त मंत्री ने बेशर्मी से उस सवाल पर आप कौन थी जिसके बारे में हर वित्त मंत्री पिछले 5 साल से भाषण दे रहे थे।

किसान को पिछले दो साल में अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए इनाम देना बनता था। किसान ने बार-बार कहा है उसे दान नहीं दाम चाहिए। यहां भी वित्त मंत्री हाथ की सफाई दिखा गई उन्होंने बड़ी शान से यह घोषणा की कि सरकार ने गेहूं और धान की रिकॉर्ड खरीद पर किसान के जेब में 2,37,000 करोड़ रुपया पहुंचाया है। आंकड़े चेक करने पर पता लगा की दरअसल इस साल की सरकारी खरीद पिछले साल से भी कम थी जब 2,48,000 करोड रुपए का धान और गेहूं खरीदा गया था। इस साल सरकारी खरीद की मात्रा 1,286 लाख टन से घटकर 1,208 लाख टन हो गई थी। खरीद से का फायदा उठाने वाले किसानों की संख्या भी 1.97 करोड़ से घट कर 1.63 करोड़ हो गई है।

यही नहीं, किसानों को एमएसपी दिलवाने के लिए अरुण जेटली द्वारा बनाई गई आशा नामक स्कीम को सरकार ने इस साल बंद कर दिया है। इस योजना का बजट घटाते घटाते पिछले साल 400 करोड रुपए किया गया था। इस बार उसे घटाकर मात्र 1 करोड़ रूपया कर दिया गया है। बाजार में फसल का ठीक दाम मिल सके उसके लिए सरकार की पीएसएस (प्राइस स्टेबलाइजेशन) और एमआईएस (मार्केट इंटरवेंशन)स्कीम में पिछले साल खर्च हुआ 3595 करोड़ रूपया, लेकिन इस साल का बजट है मात्र 1500 करोड़ रुपया।

ऐसे में इस बजट में किसान के लिए इंसाफ की गुंजाइश भी नहीं है। कृषि और उससे जुड़े हुए क्षेत्रों का कुल बजट पिछले साल के 4.26% से घटाकर इस वर्ष 3.84% कर दिया गया है। ग्रामीण विकास का बजट पिछले साल 5.59% से घटाकर इस वर्ष 5.23% कर दिया गया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का बजट पिछले साल 16000 करोड रुपए से घटाकर इस साल 15500 करोड रुपए कर दिया गया है। मनरेगा में पिछले साल खर्च हुआ था 97,034 करोड रुपए लेकिन इस साल का बजट है मात्र 72,034 करोड़ रूपया। जिस एग्री इंफ्रा फंड की बात 2 साल से जोर शोर से चल रही है उसमें 1 लाख करोड़ रुपए की जगह अब तक मात्र 2600 करोड रुपए सैंक्शन हुआ है। इसमें सरकार का योगदान पिछले साल 900 करोड़ से घटाकर इस साल 500 करोड़ कर दिया गया है। सरकार को ऑपरेटिव को समर्थन देने की बात करती है लेकिन फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के लिए बजट पिछले साल 700 करोड़ से घटाकर इस साल 500 करोड़ कर दिया गया है। पराली जलाने को रोकने के लिए किसान को सहायता देने के लिए पिछले साल 700 करोड़ का बजट था जो इस साल घटाकर शून्य कर दिया गया है।
मतलब, किसान को न इंसाफ मिला, न ईनाम और न ही ईमान। हां, एक अच्छी खबर है कि अब सरकार किसान को सैटेलाइट की बजाय ड्रोन से देखेगी। उम्मीद करनी चाहिए कि अमृत काल पूरा होने से पहले सरकार जमीन तक पहुंच जाएगी।

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