موسم عرض کو آلات سمجھ لیتے ہیں  بن کہے ہم جو تری بات سمجھ لیتے ہیں

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موسم عرض کو آلات سمجھ لیتے ہیں

بن کہے ہم جو تری بات سمجھ لیتے ہیں

بارشیں ہوں یہ ضروری تو نہیں آنکھوں سے

تیری خاموشی کو بن بات سمجھ لیتے ہیں

نیم گوشی میں تری آنکھ کا رخ بھی جانا

یا کے مرجھاۓ سے جزبات سمجھ لیتے ہیں

اتنا سمجھا ہے ترے رخ کا سنورنا کے اب

ہم تری رب سے مناجات سمجھ لیتے ہیں

شاہ اب غیر نہیں میرا سمجھنا تجھکو

بن کہے تیری ہر اک بات سمجھ لیتے ہیں

मौसमे अर्ज़ को आलात समझ लेते हैं

बिन कहे हम जो तेरी बात समझ लेते हैं

बारिशें हों ये जु़रुरी तो नहीं आंखों से

तेरी खा़मोशी को बिन बात समझ लेते हैं

नीम गोशी में तेरी आंख का रुख़ भी जाना

या के मुरझाए से जज़्बात समझ लेते हैं

इतना समझा है तिरे रुख़ का संवरना के अब

हम तेरी रब से मुनाजात समझ लेते हैं

शाह अब गै़र नहीं मेरा समझना तुझको

बिन कहे तेरी हर इक बात समझ लेते हैं

शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी

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