قوم بانٹی گئ بخت بانٹے گۓ
پھر امیروں میں تاج تخت بانٹے گۓ
یہ سیاست اماں کتنی مجبور ہے
چڑیوں سے دشمنی میں درخت کاٹے گۓ
ایک انا کی وجہ بے تکی حرص میں
کتنی ماؤں کے لال لخت کاٹے گۓ
خد کو شابا شیاں پھر حکومت نے دیں
کتنے لمحے غریبوں میں سخت کاٹے گۓ
شاہ غمگین ہے فلسفے مٹ چکے
زندگی کی طرح وقت کاٹے گۓ
कौ़म बांटी गई बख़्त बांटे गए
फिर अमीरों में ताजो तख़्त बांटे गए
ये सियासत अमां कितनी मजबूर है
चिड़ियों से दुश्मनी में दरख़्त काटे गए
एक अना की वजह बे तुकी हिर्स में
कितनी मांओं के लाल ओ लख़्त काटे गए
खु़द को शाबाशियां फिर हुकूमत ने दीं
कितने लम्हे ग़रीबों में सख़्त काटे गए
शाह ग़मगीन है फलसफे़ मिट चुके
ज़िन्दगी की तरह वक़्त काटे गए
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी